प्रदेश मंत्री डी.पी भारती जी ने बताया कि बदायूं -विकास खण्ड, अंबियापुर में आयोजित "मुख्यमंत्री सामुहिक विवाह" समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग कर 'वर-वधु' के सुखी-यशस्वी दाम्पत्य जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं. भारती जी ने बताया कि समारोह में 100 जोड़ो की शादियां बौद्ध/हिन्दू/इस्लाम धर्म के संस्कारों के साथ बहुत ही हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुई. कहा जाता है कि सबसे बड़ा दान-कन्या दान होता है. और आज माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी जी व आदरणीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के कुशल नेतृत्व में यह पुनीत कार्य का संपन्न होना कहावत को चरितार्थ कर रहा है. निश्चित ही यह अतुलनीय कदम है.
बताते चले कि सामूहिक विवाह समाज के भगीरथ बंधुओ द्वारा समाज हित में एक सार्थक सोच व अंगद कदम हैं. सामूहिक विवाह मात्र एक विवाह का आयोजन भर नहीं हैं अपितु इसके प्रभाव व समाज हित में लाभ बड़े दूरगामी हैं. किसी कमजोर, जरूरतमंद या असहाय परिवार की कन्या का विवाह करानें से बढ़कर कोई अन्य पुनीत कार्य नहीं है. इस बात का प्रमाण है कि आज हर छोटे-बड़े जिलों, कस्बों या शहरों में कई वैवाहिक संस्थाएं मिलजुकर सैकड़ों कन्याओं के हाथ सामूहिक विवाह के माध्यम से पीले कर रही हैं. जिनमें से कुछ सर्वजातीय वैवाहिक समितियां तथा कई सजातीय संस्थाएं क्रमश: सभी जातियों के तथा अपनी जाति के सामूहिक विवाह में सक्रिय हैं. ये संस्थाएं विवाह जैसे सामाजिक पुण्य कार्य में अपनी सराहनीय भूमिका निभाती हैं. प्रशंसनीय बात यह भी है कि अब इन सामूहिक वैवाहिक कार्यक्रमों में अपेक्षाकृत अच्छी संख्या देखी जा रही है. इन संस्थाओं के बैनर तले शादियां कराने पर समय की बर्बादी, दान-दहेज व फिजूलखर्ची जैसी कुरीतियों से भी समाज को मुक्ति मिल सकती है. लेकिन, इसके लिए जरूरी है कि समाज का बड़ा वर्ग भी इसमें सम्मिलित हो ताकि कोई भी जरूरतमंद व कमजोर परिवार अपनी नजरों में हीन व हास का पात्र न महसूस करे.
सम्मेलन की ही तरह सामूहिक विवाहों के आयोजन किए जाना समाज के लिए अच्छा कदम है. इस कार्यक्रम के माध्यम से जो धन, झूठे सामर्थ्य प्रदर्शन व्यय होता है वह, नई दम्पत्ति के लिए उन्नति का सहारा हो सकता है. कुछ लोग कह सकते है कि हम इस विवाह व्यय का बोझ उठाने में समर्थ हैं. वे यह क्या यह भूल जाते हें की इससे असमर्थ व्यक्तियों पर मानसिक दवाव बनता है. वे भी अपनी पुत्र या पुत्री के लिए सक्षम परिवार में रिश्ता करना चाहते हें, इस लिए सामुहिक विवाह को नहीं अपना कर, अन्य पक्ष की इच्छा या मानसिकता के आधार पर सामर्थ्य से अधिक व्यय कर आर्थिक बोझ के नीचे दव जाते हैं. ओर यह भीहै कि कोई भी स्वयं को असमर्थ या कमजोर ,गरीब साबित नहीं होने देना चाहता, चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े, कितना भी कर्ज क्यों न लेना पड़े.
“सामूहिक विवाह के आयोजन से केवल स्वयं का धन ही नहीं बचता, देश की संपदा, के साथ व्यर्थ श्रम और बहुत सारी परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाता है यह सब श्रम पूरा समाज मिलकर कर लेता हैं.“